Tuesday, October 13, 2009

कालीन उद्योग में संकट - कम मजदूरी पलायन कारण




भदोही कालीन परिचेत्र एक जमुआ गाव में ४० वर्षों से काम कर सुभाष ने अपने बच्चो काम के लिए मुंबई भेज दिया है !एसे ही भदोही से मिर्जापुर से सटे हजारों गावो वर्षों से कालीन बुनकर ने अपने बच्चो को इस काम में लगाने बजाय दूसरे कामो लगा दिया है !इसी कारण तीन हजार करोड़ रुपये के परपरागत उद्योग भारतीय कालीन उद्योग में मजदूरों की कमी के चलते देश को संकट का सामना करना पड़ रह है !उद्योग जहा कालीन बुनकरों की नई खेप के लिए सरकार से प्रशिक्षण दिलाने के लिए ट्रेंनिग सेन्टर चलाने की कवायद कर रहा है वही कम मजदूरी के चलते बुनकर इस उद्योग मे काम करने के लिए तैयार नहीं है! कालीन उद्योग में लगे मजदूरों का कहना है की इस उद्योग में काम करके के दो जून की रोटी भी मय्यसर नहीं होती है! एसे में रोजी रोजगार के लिए परदेश जाकर या मनरेगा में कम करना ज्यादा बेहतर है ! जब मैंने इस बात की तह में जाने कोशिश की तो चौकाने वाले सच सामने आये ! सरकारी और गैर सरकारी आकडे का विश्लेषण करे तो ३ तीन हजार करोड के इस उद्योग में २० लाख लोग जुड़े है यदि इसमे जुड़े सभी लोगो की एक सामान मजदूरी की गणना करे तो एक आदमी के पास १००० रुपये जाते इसमे कच्चे मॉल की खर्चे निकल दे तो मजदूरों के पास इसका ४०% प्रतिसत ही पहुचता है सिर्फ ५०० रुपये महीने प्रतिदीन १७ रुपये से भी कम वही कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यछ ओ पि गर्ग के अनुसार अनुसार इसमे ३० लोग जुड़े है जिसमे १० लाख बुनकर २० लाख भेड़ पालन से लेकर अन्य काम करते तो तो एक आदमी के पास ३३३ रुपये की मजदूरी मिलाती है ११ रूपया ही मिलता है ये आंकडे और भी कम हो जाते यदि इसमे जुड़े कालीन निर्यातक , शिपिंग , ठेकेदार , दलाल आदि की कमाई को निकल दिया जाये तो यह आंकड़ा और ही कम हो जायेगा !जबकि कालीन बुनकरों का कहना है की इसमे काफी हिसा इनके पास चला जाता है

एक बुनकर ने कहाँ है लंबे समय से हम कम मजदूरी में काम करते रहे तब हमारे पास कोई विकल्प नहीं था आज संचार साधन और यातायात की बेहतर सुबिधा के कारन देश विदेश की हल जानने वाले व्यक्ति अपने कम का बेहतर मूल्य के लिए कही और जाना पसंद करेगा मनरेगा में १०० रूपया की जगह कोई १७ रुपये में क्यों काम करेगा !कालीन निर्यातक कभी मानना है की मजदूरी कम है लेकिन अयोताको से जो रेट मिलाता है उसी में भुगतान करना पडता है ! कालीन उद्योग में लगे लोगो का मानना है की हस्त निर्मित कालीन बनाने का का कम ज्यादातर गरीब देशो में हो रहा है !उन देशो ने अपने यहाँ हस्तनिर्मित कल्लें बनाना बंद कर दिया जो विकशित हो गए

एसे में कालीन निर्माता देश और निर्यातक संघटित होकर अयोताको से दाम बढानें की मांग करनी चाहिए ! या अन्य कोई विकल्प तलाश कर बुनकरों की कमाई बढानी चाहिए !

संजय श्रीवास्तव

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