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Monday, June 20, 2011
Saturday, November 20, 2010
सुंदर कालीन का सच कालीन बुनकर- जी तोड़ मेहनत के मिलते है ११ सिर्फ 11 रुपये
सुंदर कालीन का सच
कालीन बुनकर- जी तोड़ मेहनत के मिलते है ११ सिर्फ 11 रुपये
इस कालीन उद्योग में ३० लाख मजदूर के बेहतर जीवन यापन दावा किया जाता है | इस चार्ट पैर गौर करे कि जिसमे सिर्फ कुल निर्यात में मजदूरों कि संख्या से भाग दिया गया है जिसमे सामान का निर्यात मूल्य का ४० फीसदी मजदूरी जोड़ी गयी है |
Total export gov of | Total labuor and artizen | Total income per year export/total labour | Per day Pay of labour /artizen 40% of export rate |
3 thousand caror | 30 lakhs | 10 thousand | 11 rupees per day |
,, ,, ,, | 20 lakhs | 15 thousand | 17 rupees per day |
,, ,, , , | 10 lakhs | 30 thosuand | 33 rupees per day |
, , ,, ,, | 5 lakhs | 60 thousand | 66 rupees per day |
,, ,, ,, | 4 laks | 75 thosand | 83 rupees per day |
सुंदर कालीन जो हाथ बनाते है उसमे ३० लाख मजदूरों को रोजी रोटी का दावा करने वाले निर्यातक उन्हें बेहतर जीवन यापन और रोजी रोजगार देने के नाम सरकार से अकसर रियायतो कि मांग करती है वही सरकार भी इस उद्योग में १५ लाख से २० लाख मजदूरों को इस हस्त कला उद्योग में रोजगार देने के आकड़े पेश करने से पीछे नहीं हटती है लेकिन सरकार ने कभी इन मजदूरों के हालत जानने कि कोसिस कि वही पशिमी देशो के आयातक जो तमाम मानवाधिकार कि बात करते है मज्ज्दूरो को पूरी मजदूरी मिलनी चाहिए |श्रम कानूनों का पालन होना चाहिए जी बाते विश्व के मंचों पैर उठाकर गरीब देशो पैर दबाव बनाते वो भी निर्यातको से सस्ते से सस्ता कालीन खरीदने के कोई कोर कसर नहीं छोटते है लेकिन आज भदोही का बुनकर पलायन कर गया है निर्यातक अपने कालीन निर्माण के लिए परेशान है |इसी पैर एक रिपोर्ट
भदोही कालीन परिचेत्र एक जमुआ गाव में ४० वर्षों से काम कर सुभाष ने अपने बच्चो काम के लिए मुंबई भेज दिया है !एसे ही भदोही से मिर्जापुर से सटे हजारों गावो वर्षों से कालीन कारीगरों ने अपने बच्चो को इस काम में लगाने बजाय दूसरे कामो लगा दिया है ! इसी कारण तीन हजार करोड़ रुपये के परपरागत भारतीय कालीन उद्योग में मजदूरों की कमी के चलते संकट का सामना करना पड़ रह है ! उद्योग जहा कालीन बुनकरों की नई खेप के लिए सरकार से प्रशिक्षण दिलाने के लिए ट्रेंनिग सेन्टर चलाने की कवायद कर रही है वही कम मजदूरी के चलते बुनकर इस उद्योग मे काम करने के लिए तैयार नहीं है! उद्योग में लगे मजदूरों का कहना है की इस उद्योग में काम करके के दो जून की रोटी भी मय्यसर नहीं होती है! ऐसे में रोजी रोजगार के लिए परदेश जाकर या मनरेगा में कम करना ज्यादा बेहतर है ! जब मैंने इस बात की तह जाने कोशिश की तो चौकाने वाले सच सामने आये !
सरकारी और गैर सरकारी आकडे का विश्लेषण करे तो ३ तीन हजार करोड के इस उद्योग में २० लाख लोग जुड़े है यदि इसमे जुड़े सभी लोगो की एक सामान मजदूरी डी जाये तो एक आदमी के पास १००० रुपये है जाते इसमे कच्चे मॉल की खर्चे निकल दे तो मजदूरों के पास इसका ४०% प्रतिसत ही पहुचता है १७ रुपये प्रतिदीन या सिर्फ ५०० रुपये महीने
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यछ ओ पि गर्ग के अनुसार अनुसार इसमे ३० लोग जुड़े है जिसमे १० लाख बुनकर २० लाख भेढ़ पालन से लेकर अन्य काम करते तो तो एक आदमी को पास ३३३ रुपये की मजदूरी मिलती है ! एक व्यक्ति के पास प्रतिदिन ११ रूपया ही मिलता है ये आंकडे और भी कम हो जाते यदि इसमे जुड़े कालीन निर्यातक , शिपिंग , ठेकेदार , दलाल आदि की कमाई को निकल दिया जाये तो यह आंकड़ा और ही कम हो जायेगा ! कालीन बुनकरों का कहना है की इसमे काफी हिसा इनके पास चला जाता है
एक बुनकर का कहाँ है लंबे समय से हम कम मजदूरी में कम करते रहे तब हमारे पास कोई विकल्प नहीं था आज मिल रहा वही संचार साधन और यातायात की बेहतर सुबिधा के कारन देश विदेश की हाल जानने वाले व्यक्ति अपने काम के बेहतर मूल्य के लिए कही और जाना पसंद करेगा मनरेगा में १०० रूपया की जगह कोई १७ रुपये में क्यों काम करेगा !कालीन निर्यातक कभी मानना है की मजदूरी कम है लेकिन आयातक से जो रेट मिलता है उसी में भुगतान करना पडता है ! कालीन उद्योग में लगे लोगो का मानना है की हस्त निर्मित कालीन बनाने का का कम ज्यादातर गरीब देशो में हो रहा है !उन देशो ने अपने यहाँ हस्तनिर्मित कालीन बनाना बंद कर दिया जो विकशित हो गए
ऐसे में कालीन निर्माता देश और निर्यातक संघटित होकर अयोताको से दम बदने की मांग करनी चाहिए ! या अन्य कोई विकल्प तलाश कर बुनकरों की कमाई बढानी चाहिए ! सरकारी स्तर पर कालीन बुनकरों के लिए गठित वेतन वेतन समिति पर भी कालीन निर्यातकों कब्जा बना हुआ यही कारण है कि लंबे समय से इसकी बैठक भी नहीं हो पाई | निर्यातकों द्वारा सर्कार से मंदी के नाम पर मजदूरों को रोजगार देने के लिए पैकज कि मांग कि जाती है लेकिन वह निर्यातको तक ही पहुचता है
३०००० हजार करोड़ में -३० लाख बुनकर व्यक्ति -३०००००००००००/३० लाख प्रतिवर्ष १० हजार रुपये प्रतिवर्ष जिसमे कच्चा मॉल और इत्यादी निकल दे तो सामान का ४०% मजूदूरी होतो
संजय श्रीवास्तव
socialvision@aol.com
सुंदर कालीन का सच
कालीन बुनकर- जी तोड़ मेहनत के मिलते है ११ सिर्फ 11 रुपये
इस कालीन उद्योग में ३० लाख मजदूर के बेहतर जीवन यापन दावा किया जाता है | इस चार्ट पैर गौर करे कि जिसमे सिर्फ कुल निर्यात में मजदूरों कि संख्या से भाग दिया गया है जिसमे सामान का निर्यात मूल्य का ४० फीसदी मजदूरी जोड़ी गयी है |
कुल निर्यात कुल बुनकर प्रति व्यक्ति आय ३६५ सालाना प्रतिदिन मजदूरी निर्यात का ४०% ३ हजार करोड ३० लाख मजदूर १० हजार रुपये महीने ११ रुपये
,, २० लाख मजदूर १५ हजार रूपए महीने १७ रुपये
,, १० लाख मजदूर ३० हजार महीना ३३ रुपये
,, ५ लाख मजदूर ६० हजार महीना ६६ रुपये
,, ३ लाख मजदूर १ लाख ११० रुपये
सुंदर कालीन जो हाथ बनाते है उसमे ३० लाख मजदूरों को रोजी रोटी का दावा करने वाले निर्यातक उन्हें बेहतर जीवन यापन और रोजी रोजगार देने के नाम सरकार से अकसर रियायतो कि मांग करती है वही सरकार भी इस उद्योग में १५ लाख से २० लाख मजदूरों को इस हस्त कला उद्योग में रोजगार देने के आकड़े पेश करने से पीछे नहीं हटती है लेकिन सरकार ने कभी इन मजदूरों के हालत जानने कि कोसिस कि वही पशिमी देशो के आयातक जो तमाम मानवाधिकार कि बात करते है मज्ज्दूरो को पूरी मजदूरी मिलनी चाहिए |श्रम कानूनों का पालन होना चाहिए जी बाते विश्व के मंचों पैर उठाकर गरीब देशो पैर दबाव बनाते वो भी निर्यातको से सस्ते से सस्ता कालीन खरीदने के कोई कोर कसर नहीं छोटते है लेकिन आज भदोही का बुनकर पलायन कर गया है निर्यातक अपने कालीन निर्माण के लिए परेशान है |इसी पैर एक रिपोर्ट
भदोही कालीन परिचेत्र एक जमुआ गाव में ४० वर्षों से काम कर सुभाष ने अपने बच्चो काम के लिए मुंबई भेज दिया है !एसे ही भदोही से मिर्जापुर से सटे हजारों गावो वर्षों से कालीन कारीगरों ने अपने बच्चो को इस काम में लगाने बजाय दूसरे कामो लगा दिया है ! इसी कारण तीन हजार करोड़ रुपये के परपरागत भारतीय कालीन उद्योग में मजदूरों की कमी के चलते संकट का सामना करना पड़ रह है ! उद्योग जहा कालीन बुनकरों की नई खेप के लिए सरकार से प्रशिक्षण दिलाने के लिए ट्रेंनिग सेन्टर चलाने की कवायद कर रही है वही कम मजदूरी के चलते बुनकर इस उद्योग मे काम करने के लिए तैयार नहीं है! उद्योग में लगे मजदूरों का कहना है की इस उद्योग में काम करके के दो जून की रोटी भी मय्यसर नहीं होती है! ऐसे में रोजी रोजगार के लिए परदेश जाकर या मनरेगा में कम करना ज्यादा बेहतर है ! जब मैंने इस बात की तह जाने कोशिश की तो चौकाने वाले सच सामने आये !
सरकारी और गैर सरकारी आकडे का विश्लेषण करे तो ३ तीन हजार करोड के इस उद्योग में २० लाख लोग जुड़े है यदि इसमे जुड़े सभी लोगो की एक सामान मजदूरी डी जाये तो एक आदमी के पास १००० रुपये है जाते इसमे कच्चे मॉल की खर्चे निकल दे तो मजदूरों के पास इसका ४०% प्रतिसत ही पहुचता है १७ रुपये प्रतिदीन या सिर्फ ५०० रुपये महीने
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यछ ओ पि गर्ग के अनुसार अनुसार इसमे ३० लोग जुड़े है जिसमे १० लाख बुनकर २० लाख भेढ़ पालन से लेकर अन्य काम करते तो तो एक आदमी को पास ३३३ रुपये की मजदूरी मिलती है ! एक व्यक्ति के पास प्रतिदिन ११ रूपया ही मिलता है ये आंकडे और भी कम हो जाते यदि इसमे जुड़े कालीन निर्यातक , शिपिंग , ठेकेदार , दलाल आदि की कमाई को निकल दिया जाये तो यह आंकड़ा और ही कम हो जायेगा ! कालीन बुनकरों का कहना है की इसमे काफी हिसा इनके पास चला जाता है
एक बुनकर का कहाँ है लंबे समय से हम कम मजदूरी में कम करते रहे तब हमारे पास कोई विकल्प नहीं था आज मिल रहा वही संचार साधन और यातायात की बेहतर सुबिधा के कारन देश विदेश की हाल जानने वाले व्यक्ति अपने काम के बेहतर मूल्य के लिए कही और जाना पसंद करेगा मनरेगा में १०० रूपया की जगह कोई १७ रुपये में क्यों काम करेगा !कालीन निर्यातक कभी मानना है की मजदूरी कम है लेकिन आयातक से जो रेट मिलता है उसी में भुगतान करना पडता है ! कालीन उद्योग में लगे लोगो का मानना है की हस्त निर्मित कालीन बनाने का का कम ज्यादातर गरीब देशो में हो रहा है !उन देशो ने अपने यहाँ हस्तनिर्मित कालीन बनाना बंद कर दिया जो विकशित हो गए
ऐसे में कालीन निर्माता देश और निर्यातक संघटित होकर अयोताको से दम बदने की मांग करनी चाहिए ! या अन्य कोई विकल्प तलाश कर बुनकरों की कमाई बढानी चाहिए ! सरकारी स्तर पर कालीन बुनकरों के लिए गठित वेतन वेतन समिति पर भी कालीन निर्यातकों कब्जा बना हुआ यही कारण है कि लंबे समय से इसकी बैठक भी नहीं हो पाई | निर्यातकों द्वारा सर्कार से मंदी के नाम पर मजदूरों को रोजगार देने के लिए पैकज कि मांग कि जाती है लेकिन वह निर्यातको तक ही पहुचता है
३०००० हजार करोड़ में -३० लाख बुनकर व्यक्ति -३०००००००००००/३० लाख प्रतिवर्ष १० हजार रुपये प्रतिवर्ष जिसमे कच्चा मॉल और इत्यादी निकल दे तो सामान का ४०% मजूदूरी होतो
संजय श्रीवास्तव
socialvision@aol.com
Tuesday, October 12, 2010
विश्व में पहली बार भदोही में ऐसी कालीन डिजाइन बैंक बनाई जा रही है जो कालीन उद्योग और जो नए लोग इस उद्योग से जुड़ रहे है उन्हें फायदा पहुचायेगी ! वही यह डिजाइन बैंक उन डिजाइनो को संरक्षित भी कर रही है जो हमारी भारतीय परम्परा की निशानी है जो अज्ज विलुप्त होने की कगार पर है ! इन डिजाइनो में भारतीय परम्परा की झलक के साथ हमारे देश की हरियाली भी दिखाई पड़ेगी ! जिसका उदेश्य है की जब इन डिजाइनो द्वारा बनी कालीन विदेशो में जाएगी तो वह हमारी देश की परम्परा से रूबरू हो और भारतीय परम्परागत कालीन की जो महत्वता है वह बरकरार रहे !
इन्डियन इंस्टिट्यूट आफ कार्पेट टेक्नोलाजी (iict ) जो वस्त्र मंत्रालय द्वारा कालीन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गयी है इस संस्था में आप जो डिजाइनो बनते देख रहे है यह डिजाइन बैंक के लिए बनाई जा रही है जो डिजाइन बैंक पहली बार हमारे देश में कालीन नगरी भदोही में बनाया जा रहा है और यह डिजाइने किसी भी देश की नक़ल नहीं होगी यह सिर्फ भारतीय और बिल्कुल नयी तरह की डिजाइने होगी जिसमे पर्सियन से लेकर इस समय का ट्रेट मौजूद होगा जो वाराणसी की सुन्दरता से लेकर मुगलों के समय को दर्शएगी ! पहले तो यह डिजाइन कागजो पर बनाई जा रही है ! फिर साफ्टवेयर के माध्यम से उद्योग को मुहिया कराई जाएगी इस बैंक में 15 हजार से ज्यादा डिजाइनो को अपलोड किया जायेगा ! जिसका उदेश्य इस उद्योग को बढ़ावा देने के साथ हमारी देश की परम्परा से सबको रूबरू कराना है !
अभी तक सभी देशो में पर्सियन लुक की ही कालीनो का डिजाइन बनाया जाता रहा है लेकिन इस डिजाइन बैंक में आप पर्सियन से नयी तरह की मीनाकारी से अलग लुक , टफटेट में हरियाली और इन सबके बीच सबसे बड़ी बात हमारे देश की परम्परा इन डिजाइनो में चार चाँद लगाएगी !
और जो डिजाइने अब कोई जानता भी नहीं है वह फिर कुछ नये तरह के रंगों और नई तरह की आकृतियों के साथ दिखेगी !
दिनेश पटेल
Saturday, May 22, 2010
Tuesday, October 13, 2009
कालीन उद्योग में संकट - कम मजदूरी पलायन कारण
भदोही कालीन परिचेत्र एक जमुआ गाव में ४० वर्षों से काम कर सुभाष ने अपने बच्चो काम के लिए मुंबई भेज दिया है !एसे ही भदोही से मिर्जापुर से सटे हजारों गावो वर्षों से कालीन बुनकर ने अपने बच्चो को इस काम में लगाने बजाय दूसरे कामो लगा दिया है !इसी कारण तीन हजार करोड़ रुपये के परपरागत उद्योग भारतीय कालीन उद्योग में मजदूरों की कमी के चलते देश को संकट का सामना करना पड़ रह है !उद्योग जहा कालीन बुनकरों की नई खेप के लिए सरकार से प्रशिक्षण दिलाने के लिए ट्रेंनिग सेन्टर चलाने की कवायद कर रहा है वही कम मजदूरी के चलते बुनकर इस उद्योग मे काम करने के लिए तैयार नहीं है! कालीन उद्योग में लगे मजदूरों का कहना है की इस उद्योग में काम करके के दो जून की रोटी भी मय्यसर नहीं होती है! एसे में रोजी रोजगार के लिए परदेश जाकर या मनरेगा में कम करना ज्यादा बेहतर है ! जब मैंने इस बात की तह में जाने कोशिश की तो चौकाने वाले सच सामने आये ! सरकारी और गैर सरकारी आकडे का विश्लेषण करे तो ३ तीन हजार करोड के इस उद्योग में २० लाख लोग जुड़े है यदि इसमे जुड़े सभी लोगो की एक सामान मजदूरी की गणना करे तो एक आदमी के पास १००० रुपये जाते इसमे कच्चे मॉल की खर्चे निकल दे तो मजदूरों के पास इसका ४०% प्रतिसत ही पहुचता है सिर्फ ५०० रुपये महीने प्रतिदीन १७ रुपये से भी कम वही कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यछ ओ पि गर्ग के अनुसार अनुसार इसमे ३० लोग जुड़े है जिसमे १० लाख बुनकर २० लाख भेड़ पालन से लेकर अन्य काम करते तो तो एक आदमी के पास ३३३ रुपये की मजदूरी मिलाती है ११ रूपया ही मिलता है ये आंकडे और भी कम हो जाते यदि इसमे जुड़े कालीन निर्यातक , शिपिंग , ठेकेदार , दलाल आदि की कमाई को निकल दिया जाये तो यह आंकड़ा और ही कम हो जायेगा !जबकि कालीन बुनकरों का कहना है की इसमे काफी हिसा इनके पास चला जाता है
एक बुनकर ने कहाँ है लंबे समय से हम कम मजदूरी में काम करते रहे तब हमारे पास कोई विकल्प नहीं था आज संचार साधन और यातायात की बेहतर सुबिधा के कारन देश विदेश की हल जानने वाले व्यक्ति अपने कम का बेहतर मूल्य के लिए कही और जाना पसंद करेगा मनरेगा में १०० रूपया की जगह कोई १७ रुपये में क्यों काम करेगा !कालीन निर्यातक कभी मानना है की मजदूरी कम है लेकिन अयोताको से जो रेट मिलाता है उसी में भुगतान करना पडता है ! कालीन उद्योग में लगे लोगो का मानना है की हस्त निर्मित कालीन बनाने का का कम ज्यादातर गरीब देशो में हो रहा है !उन देशो ने अपने यहाँ हस्तनिर्मित कल्लें बनाना बंद कर दिया जो विकशित हो गए
एसे में कालीन निर्माता देश और निर्यातक संघटित होकर अयोताको से दाम बढानें की मांग करनी चाहिए ! या अन्य कोई विकल्प तलाश कर बुनकरों की कमाई बढानी चाहिए !
संजय श्रीवास्तव
socialvision@aol.com